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Gagandeep Singh Bharara

Abstract

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Gagandeep Singh Bharara

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शायद मसरूफ हूं

शायद मसरूफ हूं

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कहीं मसरूफ हूं मैं,

कहीं जिंदगी है मेरी, तन्हा.... नहीं मगर,

उलफते दौर से गुज़र रहा हूं मैं,


ख्वाईशे हैं बहुत, मगर,

खुद में उलझा हूं मैं, खुद में उलझा हुआ हूं मैं,


कहीं  मसरूफ हूं मैं, हां कहीं मसरूफ हूं मैं,


बंदिशों से न घिरा, मगर,

खुद से वाकिफ नहीं हूं मैं,

ख्वाईशे हैं बहुत, मगर,

खुद में उलझा हूं मैं, खुद में उलझा हुआ हूं मैं,


रास्ते हैं बहुत, मगर,

मुश्किलों से वाकिफ नहीं मैं,

सोचता हूं मैं, मेरी मंजिलों को मिले ठिकाना,


दोस्ती है, मगर,

दोस्तों से अंजान हूं मैं,

बरसों से मिलें नहीं, इसलिए बेखबर, अनजान हूं मैं,


कहीं मसरूफ हूं मैं,

कहीं जिंदगी है मेरी, तन्हा.... नहीं मगर,

उलफते दौर से गुज़र रहा हूं मैं,


ख्वाईशे हैं बहुत, मगर,

खुद में उलझा हूं मैं, खुद में उलझा हुआ हूं मैं,


इश्क है, मगर,

आशिकी से बहुत दूर हूं मैं,

जिंदगी है, मगर...

खुद से पूछने से डरता हूं मैं,


ख्वाईशे हैं बहुत, मगर,

खुद में उलझा हूं मैं, खुद में उलझा हुआ हूं मैं....



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