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Akhlesh Manjhi

Abstract

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Akhlesh Manjhi

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भारत का आज़ाद

भारत का आज़ाद

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जब अंग्रेजों ने भारत पर डेरा डाला था।

सोच रहे भारतवासी क्या होने वाला था।।

लूट रहे थे धन दौलत इज्जत नारी की।

दिखने में गोरे पर मन इनका काला था।।


आतंक इन गोरों का जिस बच्चे ने देखा।

आज़ादी की ख़ातिर जिसने खींची रेखा।।

व्यापारी बन कर जो भारत में आये थे।

 रखता था उनके कर्मों का लेखा जोखा।।


आज़ाद के नाम से चर्चित था वो बलवीर।

दीवानो की टोली लेकर बदली थी तस्वीर।।

इंकलाब के नारे से उसने उद्घोष किया।

काकोरी लूटी जिसको बाँध सकी न जंजीर।।


रास न आई गोरों को आज़ाद की ललकार।

क्रांति का बिगुल बजाया कर दिया लाचार।।

मार गिराने को अंग्रेजों ने साजिश रच डाली।

घेर लिया दीवानों को खींच‌ रखी थी तलवार।।


'अखिल' भारत में फिर वो दिन आया था।

घेर लिया अंग्रेजों ने पर वो न घबराया था।।

आज़ाद आया‌ आज़ाद जाने की जिद में।

मार कनपटी पर गोली सबको चौंकाया था।


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