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Akhlesh Manjhi

Abstract

3.8  

Akhlesh Manjhi

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पहचान

पहचान

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पहले अंदर के  छिपे इंसान से मिल

बाद में आकर तू मुझसे शान से मिल


लोग खुद ही जान  जाएंगे तुझे पर

तू क्या है खुद की जरा पहचान से मिल


कौन  करता  है दुआएँ तेरी ख़ातिर

वो नहीं  मिलता है तो भगवान से मिल


जाननी  है गर तुझे  अपनी हक़ीक़त

छोड़ अपनों को किसी अंजान से मिल


चंद  साँसे  

;गर  बची हैं ज़िंदगी की

इसलिए सबसे बडे़ सम्मान से मिल


चाँद भी शर्मा गया है देखकर जिसको

आज तू उस ख़ूबसूरत मेहमान से मिल


सीखना  गर चाहते हो राज करना

तो कभी भारत के भी सुल्तान से मिल


निर्बलों पर झाड़ते हो रौब इतना

हौसला है तो कभी चट्टान से मिल


वक्त तेरा भी 'अखिल' आएगा अच्छा

इसलिए दिल में छिपे अरमान से मिल।


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