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Riya yogi

Abstract

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Riya yogi

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परमात्मा

परमात्मा

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मैं तुच्छ , तू अपार है 

तुझमें बसता ये सारा संसार है 


मैं होकर भी कुछ भी नहीं 

तू न होकर भी जगत का सार है 


मैं अत्याचारी, पापी, दुराचारी 

तू सृष्टि का पालनहारी 


मैं अपने कर्मो का भोगी 

तू अनंत आकाश का योगी 


मेरे हर क्षण का ज्ञाता तू है 

इस जग का भाग्य विधाता तू है।


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