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MUKESH GOEL

Abstract

4.5  

MUKESH GOEL

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सिर्फ़ बाकी निशां रह जायेगा !

सिर्फ़ बाकी निशां रह जायेगा !

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वो कहते हैं-


मुझे हर व्यक्ति इंसान नज़र आता है।

न कोई हिन्दू न मुसलमान नज़र आता है।


फिर ये इंसान!

कैसे बन जाते हैं शैतान?

उतर आते हैं कत्लो-गारत पर,

बहा देते है मानवों का खून

तब कहाँ मर जाती है

इन इंसानों की इंसानियत !


तब ये इंसान

क्यों बन जाते हैं हिन्दू-औ- मुसलमान ?


बन जाते है मौत के सौदागर।

बँट जाते हैं मज़हबों में

क्या नहीं रह सकते मिलकर आपस में ?


शांति दूत जो बातें करते हैं

आतंक से धरती को जय करने की

ख़ुद ही मिट जायेंगे

अपनी ही बनायी नफ़रत की दुनिया में

बह जायेंगे वो वक्त के साथ

खून की उन्हीं नदियों में

जो बना दी हैं इन्होंने

दूसरों का खून बहाकर


कौन अमर रहा है इस धरा पर

ये तो गीता का ज्ञान है अमर बस

जो आया है वो जायेगा

सिर्फ़ बाकी निशां रह जायेगा।


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