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Mukesh Kumar Goel

Drama

4  

Mukesh Kumar Goel

Drama

कायदे – कानून !

कायदे – कानून !

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लिखने में भी,

ना जाने क्या क्या ?

कानून कायदे नियम,

ना जाने क्या क्या ?

बंधन में बंध कर लिखना,

आता नही है मुझको

क्या होता है मुक्तक ?


क्या होता दोहा ?

क्या होती है कविता ?

क्यो दिल हैं इतना रोया ?

इतना कुछ लिखने में

समझ ना पाया मैं

कैसे लिख लेते है सभी


मैं तो चाह कर भी

नही लिख पाया कभी

बस दिल की बाते

चाहता हूं लिखना

यही है बस

मेरा एक सपना


सोच कर नही लिख पाता

ये सब तो अपने आप है आता

यहाँ है बड़े बड़े फनकार

एक से एक बड़े साहित्यकार

बस सब का मार्गदर्शन मिले


चलते रहे लिखने के सिलसिले

कलम न रुके कभी

पढ़ते रहे मेरी कविता सभी।


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