दहेज अभिशाप
दहेज अभिशाप
वाह रे कागज का टुकड़ा l
तू कितना बड़ा महान है ll
तेरे खातिर अब हर कोई l
इंसान नहीं हैवान हैं ll
तुझको पाने की सबने l
मन में ऐसे ठानी हैं ll
तेरे खातिर बहुत यहां पर l
करते खीचा तानी हैं ll
तेरे खातिर दहेज नाम पर l
बेटा बेचे मां बाप हैं ll
सभी जानते दहेज नाम ही l
बहुत बड़ा अभिशाप हैं ll
लड़की वाले बोली लगाकेl
खरीद रहे इंसान को ll
सब व्यवसाय बना बैठे l
बेच के निज स्वाभिमान को ll
जो भी चाहे बोली लगाता l
जो चाहे पा लेता हैं ll
इस कागज के टुकड़े खातिर l
शादी बस समझौता हैं ll
मत बेचो मुझको सब कोई l
बेटा रो रो करे पुकार ll
दहेज नाम पर लेन देन से l
करते हैं सब अत्याचार ll
आओ हम सब मिल जुल कर l
अब अच्छा कदम बढ़ाते हैं ll
दहेज नाम को ही हम सब l
जड़ से खत्म कराते हैं ll
दहेज खत्म हो गया जिस दिन l
रिस्ता मजबूत हो जायेगा ll
पुन: अपनी संस्कृति से l
स्वर्णिंम भारत बन जायेगा ll
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