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Abhishu sharma

Abstract

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Abhishu sharma

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ये तेरा घर ये मेरा घर

ये तेरा घर ये मेरा घर

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खिलती कलियों का रसपान करती ,

अपनी नादान अठखेलियों से इंद्रधनुष की पगडंडी रचती -संवारती

यह रंग बिरंगी तितलियों के मनमोहक स्वर्ग से सुंदर

क्षितिज में बसी अपनी बगिया को

रोशन हर पल रखते जुगनुओं की अनंत कतार को

मेरी अंधियारी ,स्याह काली सुरंग की नाउम्मीदी के तराजू में तौल दिया


अपनी दिन ढले ,सुरमा तले ,

ड्राइंग -रूम के मध्य रखे

 सोफे -सेट पर लड़ी पिलो(तकिया ) फाइट को

मेरी पुलवामा में सूरमा द्वारा जीती

 सर्जिकल -स्ट्राइक का नाम दे दिया

 

अपनी ओछी ,क्षणभंगुर ,पानी के बुलबुले से पहले फूटती योग साधना को

मेरा दलाई लामा कह दिया

 

अपने डायबिटीज और रेबीज के रूटीन चेकअप को

मेरे अग्निवीर परीक्षा का मेडिकल-टेस्ट कह दिया

 

अपने कब्ज से बिछी रंगीन चादर में पड़े खटमल को

मेरा मखमल से मुलायम बिस्तर कह दिया

 

अपनी जबान केसरी से महकी ,उधड़ी भोजपुरी को

मेरी फर्राटा अंग्रेजी का नाम दे दिया

 

अपनी घुटने तक चिथड़ी ,फटी शेडेड जीन्स को

मेरी मोती में पिरोयी सूती धोती पर पहना दिया

 

अपने हनी में डूबे , बादशाह का ताज पहने ,

 शोर के सुर -ताल में,

 रेप-सांग के प्लास्टिक के मुकुट को

मेरी लता के कंठ में रची -बसी कोयल कह दिया

 

अपने गुसलखाने के पर्दो को

मेरा कोरोना का मास्क कह दिया

 

अपने डस्टबिन में पड़े तीन दिन पुराने कचरे को

मेरी पेट की भूख कह दिया

 

अपनी रद्दी पर बिछी धूल के उड़ते गुबार को

मेरी जीवन की पूंजी कह दिया

 

अपनी बैलगाड़ी में बंधे तीसरे बैल को

मेरा फाइटर जेट कह दिया

 

अपने वर्क -फ्रॉम -होम को मेरा बिजनेस-हब

अपने रविवार को मेरा सोमवार कह दिया

 

अपने दिहाड़ी पर लगे इनकम टैक्स में बची चिल्लर को

मेरी जीवन भर की मेहनत की कमाई कह दिया

   

अपने दूध को मेरी खीर और

अपनी नाक की नकसीर में से निकले नसवार को 

मेरी नथनी कह दिया  

 

अपने फ़कीर को मेरा पीर

अपनी नंगी आँखों में मोतियाबिन्द के काले पानी को

 मेरा सीसीटीवी कैमरा कह दिया

 

अपनी फेक -न्यूज़ से मेरे अखबार को

अपनी कुदाल से मेरी जवान जीवन की

 बगिया को तहस नहस कर दिया।      



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