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Abhishu sharma

Tragedy

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Abhishu sharma

Tragedy

हृदय

हृदय

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हृदय की तुड़ी मुड़ी सारंगी के उलझे तारों से रगड़ खाता

एक दर्द भरी आह में पिरोया कभी

वसंत ऋतू की बेला में झूमता

वो मुस्कुराता गाना जाने कहाँ खो गया वो

था कभी जो जाना माना ,हरदिल पहचाना

वक़्त के मद्धम बढ़ते ,लम्बे बोझिल से

हालातों के तूफ़ान की आंधी में कहीं बह गया

वो हरदिल अज़ीज़ हृदय ना जाने कहाँ खो गया

दर्द की स्लेट पर पहले नीला आकाश लिख ,बाद में पीला बदन हुआ

साँसों की सौदेबाज़ी में घायल होकर ,

कुछ स्याह घंटों से जमी अवसाद की मोच पर जोशोजुनूं की सोच का मलहम रगड़कर

चेहरे पर मुस्कान और हृदय में आंसुओं का सैलाब भरकर

हवा के साथ कभी हवा के खिलाफ बहने की आरज़ू मन में लेकर

एक सूखे पत्ते-से अपने साए को

हवा की सांय -सांय में भिगोकर

पंखों की स्वछन्द उड़ान देने का वादा कर रहा है वो । 



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