राज गद्दी के लोभ ने फिर से जनता के बीच में लाया है। राज गद्दी के लोभ ने फिर से जनता के बीच में लाया है।
डर के लहरों से भला, तू साहिल पे है क्यों खड़ा? डर के लहरों से भला, तू साहिल पे है क्यों खड़ा?
इस धुंधली सी आंधी को दूर से ही नमस्कार कर दो। इस धुंधली सी आंधी को दूर से ही नमस्कार कर दो।
मैं सरहद पर खड़ा हूँ तुम मेरे आँगन में पहरा दो। मैं सरहद पर खड़ा हूँ तुम मेरे आँगन में पहरा दो।
इस खोने पाने की उलझन में हम जो भी थे वो भी न हुए। इस खोने पाने की उलझन में हम जो भी थे वो भी न हुए।
ना समझ पायी वो अंकल के गन्दे इरादे कितनी तड़पी होगी, कितना रोयी ना समझ पायी वो अंकल के गन्दे इरादे कितनी तड़पी होगी, कितना रोयी