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आत्मबल

आत्मबल

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संघर्ष की तपती ज़मीन पर,

तू अपना पग बढ़ा।

डर के लहरों से भला,

तू साहिल पे है क्यों खड़ा?

रेत की आंधी में चलता,

ऊँट जैसा दम लगा।

और जो थक जाए अगर तू,

आत्मबल की लौ जला।

इतनी तूने की जो कोशिश,

होगा जीवन संतुष्टि से भरा ।

नहीं तो अंतिम क्षण तक तूने, खुद से ही खुद को छला



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