प्रभु से अरज़
प्रभु से अरज़
हे प्रभु ! बस तुमसे इतनी है अरज़,
शाम्भवि सी शक्ति देना,
स्निग्धा से भरा जीवन।
संजय की आँखें देना,
जिससे देख सकूँ मैं दुर्गम।
जो तुमसे ये सब मैंने पाया,
तो कुछ नूतन कर पाऊँगी।
और घनघोर निशि में भी,
तारों सा टिम-टिमाऊँगी।
नित-नित यूँ निखर कर मैं,
प्रतिभावान हो जाऊँगी ।
और तुम्हारी इस दुनिया में,
दीपक सा प्रकाश फैलाऊँगी ।
शाम्भवि - दुर्गा
स्निग्धा – शांत
निशि – रात