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अनजाने रिश्ते

अनजाने रिश्ते

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कैसी है ये अनोखी जिंदगानी ?

हर समय बदलती इसकी कहानी।

घर का वो छोटा सा आँगन,

जिसका हर खेल था पावन।


वो रिश्ते जो कहलाते अपने,

जिनकी छाया में देखे कई सपने।

वो धागे जो ईश्वर ने जोड़े,

फिर भी वो पल लगते क्यों थोड़े।


आज जिन्दगी किस मोड़ पर लाई,

साथ न दे खुद की परछाई।

जिन्दगी की अनदेखी राहों पर,

भावनाओं के अदृश्य धागों पर।


कुछ बंधन हमने खुद बांधे,

कुछ मोती हमने खुद पिरोए।

कहने को तो वो है पराए

फिर भी इस पराएपन में

अपनेपन की खुश्बू क्यों है ?


इन अदृश्य बंधनों में,

बंध जाने की आरजू क्यों है ?

इन अनकहे रिश्तों को,

निभाने कि जुस्तजू क्यों है ?


शायद यही अनोखी जिंदगानी है,

हर समय बदलती इसकी कहानी है।


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