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Nishi Singh

Abstract

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Nishi Singh

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सच

सच

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पल-पल मिल जीवन यह बनता,

सुख-दुःख दोनों संग है चलता,

खुशियों की एक रात है आती।


हर तरफ खुशहाली छा जाती,

नव-नव तरु पल्लव हैं खिलते।

मन में अगणित सपने हैं सजते,

जब ये सपने पूरे होते,

सब तरफ अपने ही होते।


पर अंधियारे की

एक काली छाया,

तोड़ जाती सारी यह माया।


अपनों का कहीं नाम न होता,

परछाई को भी हमसे

कोई काम न होता।


टूट जाते सब रिश्ते-नाते,

जो कभी हमारे संग थे आते।

यह भी जीवन का एक पल है,

जिसका आना आज या कल है।


सुख-दुःख के इन लहरों के संग,

जीवन की यह नदी है बहती।

पर अंत समय में ये लहरें,

मृत्यु के सागर में जा मिलती।


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