हम जो भी थे, वो भी न हुए
हम जो भी थे, वो भी न हुए
इस वक़्त की आंधी में
कुछ आबाद हुए
कुछ बर्बाद हुए
महर-ओ-नक्शों-हुनर
ऐसे थे जो शाद हुए
दिलशाद हुए।
कुछ काटों की फितरत
अब क्या कहिये
कुछ चुभ भी गई
कुछ गढ़ भी गई।
फिर भी फूलों के तबस्सुम
न उनसे बर्बाद हुए
आज नही तो कल समझोगे
यह दुनियादारी यह कारगुज़ारी।
जिससे तुम इतना बचते हो
इस बचने में हम नाशाद हुए
हमने जिस बुत को पूजा था
शिद्दत की माला जप-जप कर।
उस पत्थरदिल से यह पूछो
उससे घर कितने आबाद हुए
जो होना है वो होना है
फिर काहे का रोना है।
झरने की किस्मत में आख़िर
पहाड़ों से गिरना होना
फिर उसका अंदाज़ जो है
उसमें शीतलता का सोना है।
इस सोने की हसरत में ए दोस्त
जाने कितने दिल
यूँ दिल-ए-बर्बाद हुए
तुम मेरे हो
मैं हूँ किसका
तुमने तो मुझे अपनाया नहीं
किसी और का कैसे होते हैं।
यह हुनर हमें कभी
आया ही नही
इस खोने पाने की उलझन में
हम जो भी थे
वो भी न हुए।