विस्थापन
विस्थापन
चार बच्चों का लेकर परिवार
आ गया वो शहर में
खा रहा दर दर ठोकर
पर नहीं मिला काम
हार कर पीठ पर
ढोने लगा समान
छूट गई शिक्षा बच्चों की
करने लगे सड़क पर काम नहीं मिली रोटी भरपेट
मिटाने पेट की आग
पत्नी लगी करने
जूठन साफ ,
स्टेशन पर बना आशियाँ
याद कर रहा उजले दिन को
बिखर गया पूरा परिवार
कजरी भी रूठ गई
ना जाने कहाँ चली गई
चला था लेकर श्यामा को साथ
पर छोड़ दिया उसने भी हाथ
बेच दिया प्यारी मिट्टी को
औने-पौने दामों में
सहचर उसका लटक गया
रस्सी के फंदों में
अब भी न कोई समझ रहा
ना कोई समझा है
कौन विस्थापित हुआ शहर में
क्यों विस्थापित हुआ शहर में ? नहीं किसी को चिंता इसकी
सभी डूबे अपने स्वार्थ
ले ले कर गहरी श्वास ।
