शाम
शाम
हर एक शाम को चिराग़ों की तरह
मैं अपनी ज़िन्दगी जलाता चला गया
पतंगे आते रहे राहों में
मैं उनसे दामन चुराता चला गया
ख़याल रखना आपकी जिम्मेदारी कहाँ
मैं ही मुसीबत में आता चला गया
मेरा कहा ग़र बुरा लगा तो माफ़ कर देना
मेरे आंँसुओं के नमक से
समंदर भी इतराता चला गया
तुम मेरी ज़िन्दगी के खार बन गए
मैं आँधियों से अपना घर बचाता चला गया
तुझे याद करके हम बेचैन हो उठते हैं
ना जाने कब से दिल तुझ पर आता चला गया
ग़लतियों की हम महफ़िल मैं माफ़ी मांँगे
इल्जाम हमारे सर यूंँ आता चला गया
आप की ख़ातिर अब तक जिया हूंँ
और मैं यह झूठी कसम खाता चला गया
वह दोस्त मेरा इतना अज़ीज़ था
मैं ही दुश्मनी उससे निभाता चला गया
सर से लेकर पांव तक जन्नत हो तुम
दिल यूंँ ही नहीं अपना तुझ पर आता चला गया।