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Rajeev Tripathi

Romance Tragedy

4.7  

Rajeev Tripathi

Romance Tragedy

शाम

शाम

1 min
245


हर एक शाम को चिराग़ों की तरह

मैं अपनी ज़िन्दगी जलाता चला गया

पतंगे आते रहे राहों में 

मैं उनसे दामन चुराता चला गया 

ख़याल रखना आपकी जिम्मेदारी कहाँ


मैं ही मुसीबत में आता चला गया

मेरा कहा ग़र बुरा लगा तो माफ़ कर देना

मेरे आंँसुओं के नमक से

समंदर भी इतराता चला गया

तुम मेरी ज़िन्दगी के खार बन गए

मैं आँधियों से अपना घर बचाता चला गया 

तुझे याद करके हम बेचैन हो उठते हैं


ना जाने कब से दिल तुझ पर आता चला गया 

ग़लतियों की हम महफ़िल मैं माफ़ी मांँगे 

इल्जाम हमारे सर यूंँ आता चला गया

आप की ख़ातिर अब तक जिया हूंँ

और मैं यह झूठी कसम खाता चला गया


वह दोस्त मेरा इतना अज़ीज़ था

मैं ही दुश्मनी उससे निभाता चला गया  

सर से लेकर पांव तक जन्नत हो तुम

दिल यूंँ ही नहीं अपना तुझ पर आता चला गया।


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