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Rajeev Tripathi

Romance Tragedy

3.5  

Rajeev Tripathi

Romance Tragedy

साथ

साथ

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390


होती रही उनसे गुफ़्तगू मगर

बात ना बनी

अफ़साना बनाया उन्होंने मेरी मोहब्बत का

प्यार की कभी शुरुआत ना बनी 

हर दफ़ा आने की वह कह गए


मिलन की कोई सूरत ना वो तलबगार बनी

प्यार में हमने थोड़ा क्या मांँग लिया

उनकी नज़रों में तो यह भी एक सवाल बनी

हर एक वादा मेरे ख़िलाफ़ हो गया


प्यार करना जैसे गुनाह हो गया

बनना चाहा उनका मगर बात ना बनी

हर दफ़ा वादा करके मुकर गए

हमारी ना सुबह ना रात बनी


रक़ीब ने इतना लिखा पढ़ा दिया उन्हें

बात बनते बनते उनकी बात बनी

तुम्हारा ज़िक्र और वफ़ादारी

या तो वह कर रहे हैं मेरे मरने का इंतज़ार

हो जाए और ज़्यादा बेबस और लाचार


इसी इंतज़ार में हमारी मुलाक़ात ना बनी

न जाने हमारे दिन कब बदलेंगे

जब तक ज़िंदा है दुआ मोहब्बत की करेंगे

बाद मरने के मेरे वो क़सूरवार बनी


ग़रीबी और अमीरी कितनी गहरी खाई है

शायद इसी वज़ह से वह हमारे साथ ना चली।


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