साथ
साथ
होती रही उनसे गुफ़्तगू मगर
बात ना बनी
अफ़साना बनाया उन्होंने मेरी मोहब्बत का
प्यार की कभी शुरुआत ना बनी
हर दफ़ा आने की वह कह गए
मिलन की कोई सूरत ना वो तलबगार बनी
प्यार में हमने थोड़ा क्या मांँग लिया
उनकी नज़रों में तो यह भी एक सवाल बनी
हर एक वादा मेरे ख़िलाफ़ हो गया
प्यार करना जैसे गुनाह हो गया
बनना चाहा उनका मगर बात ना बनी
हर दफ़ा वादा करके मुकर गए
हमारी ना सुबह ना रात बनी
रक़ीब ने इतना लिखा पढ़ा दिया उन्हें
बात बनते बनते उनकी बात बनी
तुम्हारा ज़िक्र और वफ़ादारी
या तो वह कर रहे हैं मेरे मरने का इंतज़ार
हो जाए और ज़्यादा बेबस और लाचार
इसी इंतज़ार में हमारी मुलाक़ात ना बनी
न जाने हमारे दिन कब बदलेंगे
जब तक ज़िंदा है दुआ मोहब्बत की करेंगे
बाद मरने के मेरे वो क़सूरवार बनी
ग़रीबी और अमीरी कितनी गहरी खाई है
शायद इसी वज़ह से वह हमारे साथ ना चली।