साया
साया
ख़ुद ही कहता है कि भूलेंगे तुम्हें
याद रखता है जो मुझे सायो की तरह
दूर तक कोई दरख़्त नज़र नहीं आता
धूप की चिलचिलाती रोशनी में
वह मुझे पाता है एक अजनबी की तरह
फ़रेब दे जाती है उनकी निगाह भी मुझे
सामने जो नज़र नहीं आता
निभाए किस तरह वह अपना वादा
दरमियां है मेरे कुछ फ़ासला ज़्यादा
वक्त बेवक्त निगाहें बुझी बुझी लगती है
शाम ही से लगता है कुछ बोझ ज़्यादा
उनके उसूल मेरी आदतों से बढ़कर है
कहता हैं पीने का अब नहीं है इरादा
दोस्तों की बद्दुआ लगी है मुझे
या कर बैठे हैं तुम्हारा ज़िक्र ज़्यादा
बात तो बनते बनते बन जाती है
होता नहीं है मगर पक्का इरादा
ज़ख़्म देता है वो रूह से ज़्यादा
कभी कभी वह इल्ज़ाम देता है
जो रहता है मेरे साथ बहुत ज़्यादा
आँख से लहू ही नहीं टपकता है वर्ना
करता है वह बहुत आने का वादा।

