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chandraprabha kumar

Romance

4  

chandraprabha kumar

Romance

कहॉं

कहॉं

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     कहॉं मीत मन के खो गये थे,

     टेरते टेरते हारी थी मैं तो,

     आज मिले हो भूले भूले से,

     जब दृग मेरे अश्रु भरे हैं ।


    मन मेरा अब टूट गया है,

    छोड़ तो चुकी हूँ नातों की डोरी,

    जो सँभाली थी बड़े जतन से,

     भग्न आस अब मेरी वह है। 


    कभी जो अपना था खो गया है,

    जिसे सहेजा था छूट गया है,

    आए हो मन मीत अब मेरे,

    देर बहुत कर दी तुमने ।


   बीत गया जो अपना था मेरा,

   सब कुछ हटा के हूँ एकाकी,

   क्या दूँ तुमको अब पास मेरे,

   मन के मीत कहॉं खो गये थे।।


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