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chandraprabha kumar

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chandraprabha kumar

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अमृत पुत्र

अमृत पुत्र

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  सर्प क्यों इतने चकित हो

    दंश का अमृत है,

     पी रहा है विष युगों से

       सत्य है, आश्वस्त है।


        है नहीं सागर को पाना

         मैं नदी में समस्त हूँ,

          सपनों का मरना नहीं

           वयम् अमृतस्य पुत्राः॥



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