chandraprabha kumar
Children
आज हम गए जंगल
लाने के लिए लकड़ी ,
लकड़ी लकड़ी छुट गई
साथ में आ गई लड़की।
एकान्त सा...
सफल जीवन
शिव सावन
एकाकी प्रहर
अमृत पु...
उसी का प्रसा...
गये जंगल
गये बाजार
जा...
सुगन्ध महुआ क...
तुम्हारे लिए भोजन लाऊँगी आज तुम्हें उड़ना सिखाऊँगी। तुम्हारे लिए भोजन लाऊँगी आज तुम्हें उड़ना सिखाऊँगी।
सरपट-सरपट दौड़ा ट्रैक्टर, मेला देख हंसी-खुशी घर आये बच्चे। सरपट-सरपट दौड़ा ट्रैक्टर, मेला देख हंसी-खुशी घर आये बच्चे।
सुभाष-भगत-सुखदेव-गुरु, चन्द्रशेखर आज़ाद यहाँ, अशफाक उल्ला और बिस्मिल।। सुभाष-भगत-सुखदेव-गुरु, चन्द्रशेखर आज़ाद यहाँ, अशफाक उल्ला और बिस्मिल।।
बड़े होने की ख्वाहिश थी इसलिए कि किताबों से छुट्टी मिलेगी परीक्षा नहीं देनी होगी। बड़े होने की ख्वाहिश थी इसलिए कि किताबों से छुट्टी मिलेगी परीक्षा नहीं देनी...
देख चिरैया प्यासी है। देख चिरैया प्यासी है।
नीले पंखों वाली मैं हूं मुझे आप सभी से बहुत प्यार है। नीले पंखों वाली मैं हूं मुझे आप सभी से बहुत प्यार है।
घर बनाये झोले ले जाते थे जहाँ वो चारदीवारी ढूंढ रहा हूं। घर बनाये झोले ले जाते थे जहाँ वो चारदीवारी ढूंढ रहा हूं।
कानन सूने सूने लगते , वनचर है भयभीत सभी ! नभ बादल को तरस रहे हैं,। कानन सूने सूने लगते , वनचर है भयभीत सभी ! नभ बादल को तरस रहे हैं,।
ख़ुद टूट कर भी, दिलों को जोड़ने का, जिगर रखती हैं गुल्लकें। ख़ुद टूट कर भी, दिलों को जोड़ने का, जिगर रखती हैं गुल्लकें।
चोंच उसकी लाल है और आसमान में भी लाली छा जाती है तब। चोंच उसकी लाल है और आसमान में भी लाली छा जाती है तब।
मैं परिंदा इस गगन का कैसे इंसान का गुनाह माफ कर दूँ मेरे हिस्से न कुछ बचा है मैं परिंदा इस गगन का कैसे इंसान का गुनाह माफ कर दूँ मेरे हिस्से न कुछ बचा ...
कर सकता था वो क्या क्या था उसके हाथ में, ज्यों भिखारी चल रहा था पोटली ले साथ में। कर सकता था वो क्या क्या था उसके हाथ में, ज्यों भिखारी चल रहा था पोटली ले साथ ...
उम्र हो गई पन्द्रह की मजबूरी है तन की दूरी भी क्या मन की दूरी है। उम्र हो गई पन्द्रह की मजबूरी है तन की दूरी भी क्या मन की दूरी है।
कुरुक्षेत्र का सुदीर्घ मैदान सरसों के पीले फूलों से लदा हुआ। कुरुक्षेत्र का सुदीर्घ मैदान सरसों के पीले फूलों से लदा हुआ।
अब तो वक्त की कद्र करना सीख लो... अब तो वक्त की कद्र करना सीख लो...
छिपा है आनंद संतोष में, भोली-सी माँ के आगोश में... छिपा है आनंद संतोष में, भोली-सी माँ के आगोश में...
कहीं सागर भरा देखो कहीं सूखा शहर सारा। कहीं पर्वत है कचरों का कहीं जंगल कटा न्यारा कहीं सागर भरा देखो कहीं सूखा शहर सारा। कहीं पर्वत है कचरों का कहीं जंगल कटा न...
चौराहे पर खड़ा वो बचपन चौराहे पर खड़ा वो बचपन
पर अब भी जब किसी रोज़ थक कर बिन खाए सो जाता हूँ मैं... पर अब भी जब किसी रोज़ थक कर बिन खाए सो जाता हूँ मैं...
रोज प्यार से तुम अपने, आँचल में मुझे छुपाती थीं... रोज प्यार से तुम अपने, आँचल में मुझे छुपाती थीं...