बचपन की कुछ शिकायतें
बचपन की कुछ शिकायतें
हे भगवान तुम से आज तो करनी बहुत शिकायत है,
ऐसा कर दो आप बच्चों की एक बड़ी सरकार बना दो ,
खेलकूद को रखो और लिखने पढ़ने की छुट्टी करा दो,
पापा कहते पढ़ लो और मम्मी भी कहती पढ़ लो तुम,
पापा कितना और पढूं मैं? मम्मी कितना और पढूं?
कहते हो पढ़ -लिख कर सफलता की सीढ़ी चढ़ ले ,
पापा कदम मेरे छोटे हैं,और सीढ़ियाँ नजर न आती हैं,
बस्ता मेरा भारी ना भावना इसमें और दिल तो खाली है ,
खेलकूद छूट गया मुझे तो नजर ना आती कोई मंजिल है,
मम्मी कहती रहती मत खेलो नहीं तो फेल हो जाओगे ,
फेल हो जाने पर मम्मी -पापा की डांट बहुत खाओगे,
इतनी जल्दी-जल्दी आखिर ये इम्तेहान क्यों आ जाते हैं?
पढ़ता रात भर जाग कर फिर ये प्रश्न मेरा सिर खाते हैं,
और ना जाने प्रश्न पत्र में कहाँ -कहाँ से ये प्रश्न आते हैं ?
सर के ऊपर सब घूमता उत्तर न जाने कहाँ भूल जाता हूँ?
कितना भी पढ़ लूं अब्बल नंबर तब भी तो नहीं आते हैं,
हे भगवान तुम से आज तो करनी बहुत शिकायत है,
ऐसा कर दो आप बच्चों की एक बड़ी सरकार बना दो ,
खेलकूद को रखो और लिखने पढ़ने की छुट्टी करा दो!