परियों की दुनिया
परियों की दुनिया
परियों की सुन्दर दुनिय ,में
घर मेरा भी होता काश,
होते अगर जो पंख मेरे तो
मैं भी फिर उड़ती आकाश,
तारे का माथे पर मेरे
काश,मुकुट जो होता,
हरदम टिमटिमाता रहता
वो कितना सुंदर होता,
जादू की भी एक छड़ी
होती फिर तो मेरे पास,
घूमा के उसको कर लेती
मन की मैं,पूरी हर आस,
हँसती रहती मैं हरदम ही
होती न मैं कभी उदास,
सुन्दर-सुन्दर कपड़े भी
होते फिर तो मेरे पास,
यही सोचते-सोचते,मैं
न जाने कब सो गई ?
खुली आँखें तो देखा,न
जाने कब सुबह हो गई ?
सोचा जो कुछ भी मैंनें था
थी वो एक मनघडंत कहानी
पर मेरे पापा तो मुझे असल
में ही, कहते हैं परियों की रानी।