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धरती मां हिसाब लेगी

धरती मां हिसाब लेगी

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ज़रूरी है अत्याधुनिकता यह तो हमने देखा है,

जरूरत और विध्वंस के मध्य बेहद महीन एक रेखा है।


आधुनिकता का नंगा सत्य क्या तुम सच में जानोगे,

मैं कह दूं कि डूब पड़ी है क्या तुम इसको मानोगे।


हम सारे वर्षों पहले से ही सारी सीमाएं तोड़ चुके,

जिस मां ने सब कुछ बख्शा है हम सब उसका दिल तोड़ चुके।


उसके बच्चे उसके बच्चों पर ही करते हैं अत्याचार,

बोलो फिर वह कैसे सह ले हम सबका ऐसा व्यवहार।


हम सब सशक्त बच्चे हैं उसके जो बोल समझ सुन सकते हैं,

अपना जीवन सफल करने को ढेरों सपने बुन सकते हैं।


पर वनस्पति को नष्ट करके हम ने ही अत्याचार किया,

मूक जीवों का वध कर सकें यह किसने है अधिकार दिया।


प्रगति के दंभ में हुए अंधे जो भी मन चाहा वही किया,

उस माता की आंखों को भी ग्लानि के अश्रुओं से भर दिया।


पर्वत बालू ना छोड़े हमने ना नदियों को बख्शा है,

यह मां हम सबकी प्रेममयी करती फिर भी यह रक्षा है।


सब कुछ सृष्

टि का छीन लिया अपने मन मुताबिक ढाल लिया,

कुछ शर्म करो उस धरती मां ने फिर भी हमको पाल लिया।


जिन नदियों का पानी पीते उनको भी प्रदूषित कर दिया,

समुंदर ही अछूते थे उनमें भी कारखानों का जहर भर दिया।


इस जहरीले पानी को वे बेचारे जीव सह ना पाते हैं,

कितनी बड़ी तादाद में मर-मर कर तट पर आते हैं।


बाकी सब को तुम छोड़ो हम तो खुद ही के दुश्मन बन बैठे,

हवा को भी ना बख्शेंगे मन में ऐसा प्रण कर बैठे।


हम सब की मक्कारी का जल्द ही घड़ा यह भरने वाला है,

शांति से बैठो और खा लो मुंह में आखिरी यह जो निवाला है।


चाहे तुम यह मत मानो पर वक्त यह जल्दी आएगा,

शानो शौकत गाड़ी बंगला यहीं पड़ा रह जाएगा।


फिर इक रोटी और दो बूंद पानी का दाम ये पैसा चुका ना पाएगा,

फिर तिरस्कृत और अक्षम्य मनुष्य तिल तिल कर के मर जाएगा।


नालायक औलाद को कब तक यह मां अपने ह्रदय में स्थान देगी,

बस उस दिन का इंतजार करो जब यह सारे जुल्मों का हिसाब लेगी।



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