समय कभी बदलता नहीं है
समय कभी बदलता नहीं है
मैं स्त्री हूं अतः यह जानती हूं
स्त्रियों के लिए समय कभी बदलता नहीं है
पुरुष कहता तो है किंतु संग चलता नहीं है
जैसे दीपक कभी हवाओं के दम पर जलता नहीं है
स्थिती कुछ बदली जरूर है क्योंकि समय की पुकार है
किंतु अभी भी समाज में ऐसी स्त्रियों की भरमार है
जिन्हें बिन बात कुल्टा कुलक्षिणी वैश्या तक कहा जाता है
हालांकि इन शब्दों से उनका दूर-दूर तक ना कोई नाता है
स्त्री को बड़े सम्माननीय शब्दों से नवाज़ा जाता है
पीस पूर्जा पटाख़ा जैसे नामों से पहचाना जाता है
क्योंकि उस समय वह स्त्री उसकी मां या बहन नहीं होती
पर यही सब टिप्पणियां अपनी बहन पर सहन नहीं होतीं
क्या..? अगर वो नेता अभिनेता या आई ए एस बन गई है
है तो वह वहीं पुरुषों के संरक्षण में पली ढली बेचारी स्त्री
अब भी उसके चरित्र को उसकी नजरों से आंका जाता है
उसका अस्तित्व समझने को ना मन में झांका जाता है
आत्मीयता से अगर जो किसी से बात कर ली
ओ भाई..! संभल के रहीओ जरा इससे
मैंने कल ही सुना कि तेरी वाली बड़ी चालू है
अन्य सभी पुरुष उस व्यक्ति से ईर्ष्यालु है
पुरुष जैसा भी हो उसे निभानी ही है
उसका जीवन तो एक पुरुष के साथ ही ढलता है
पति आवारा तो क्या वापिस यहीं तो आएगा
वह तो पुरुष है उसका इतना तो चलता है
शादी की पहली रात सबसे बड़ी परीक्षा होती है
मन ही मन डरती है ! कांपती ! है रोती है...!
जहां आज भी उसके चरित्र को परखा जाता है
सफेद चादर को गवाही के लिए रखा जाता है
क्या सच में स्त्री के लिए कभी वक़्त बदल पाएगा
जब उसे वस्तु न समझ कर स्त्री ही समझा जाएगा
जब उसके तन को ना अंतर्मन को सब टटोलेंगे
जब उसके चरित्र को ना कसौटी पे कसा जाएगा।