खुश हूं मैं कि खुश नहीं हूं
खुश हूं मैं कि खुश नहीं हूं


खुश हूं मैं कि खुश नहीं हूं
अगर खुश होती तो यह कैसे जानती
जीवन सिर्फ सुबह की मीठी नींद और फूलों का बिछौना नहीं है
है वर्षों का अर्जन यह किसी जिद्दी बच्चे का खिलौना नहीं है
इसमें उद्गार भी है और प्रतिकार भी है
उल्लास भरी इन आंखों को अश्रुओं ने भी सजाया है
प्यारी यादों को यूं ही नहीं किसी ने मन में बसाया है
और यही जीवन का आधार भी है
खुश हूं मैं कि रौशन नहीं हूं
अगर उजाला होती तो यह कैसे जानती
जीवन सिर्फ खिलती धूप और चिड़ियों का चहचहाना नहीं है
इसमें विरह की वेदना भी है सिर्फ मिलन का कहकहाना नहीं है
इसमें इक सुनहरी भोर और रात्रि का अंधकार भी है
चांद तारों को यूं ही नहीं कवि ने कविता में सजाया है
रात्रि के सन्नाटे ने ही उसे यह एहसास दिलाया है
और ऐसा ही मुझे स्वीकार भी है
खुश हूं मैं कि अभाव भी हैं
अगर परिपूर्णता होती तो यह कैसे जानती
जीवन सिर्फ बाजारों की रौनक और होटलों में खाना नहीं है
इसमें गुरबत की बेबसी भी है सिर्फ रईसों का खजाना नहीं है
इसमें मजबूरी के आंसू और मुसीबतों की भरमार भी है
दुखियों ने यूं ही नहीं सड़क पर अपना बिस्तर लगाया है
इस सोच ने मुझे झिंझोड़ा और मेरे ज़मीर को जगाया है
और इससे ही मुझे सरोकार भी है
खुश हूं मैं की हार भी है
अगर जीत ही होती तो यह कैसे जानती
जीवन कागज पर लिखा कोई नंबर या अव्वल आना नहीं है
इसमें खुद के लिए जीना भी है सिर्फ दूसरों को रिझाना नही है
इसमें गिर जाने का दर्द और फिर उठ जाने की दरकार भी है
लाइन में लगकर मिलने वाला प्रसाद खाया है
हार के बाद मिलने वाली जीत का स्वाद पाया है
और यही जीवन शानदार भी है।