मेरी नाव
मेरी नाव
एक दिन मैने मेघों पर नौका चलाई
कल्पनाओं की पतवार लिए सुनहरी नौका बनाई
इच्छाओं की लहरों पे जो मेरी नाँव चली
रंगबिरंगी हवाओं ने ली अंगड़ाई
दुनिया से हुआ मेरा मोह भंग
सपनों की गठरी बाँध मैं निकल पड़ा अपनी नौका संग
दूर मुझे बुलाते दिखे मतवाले मतंग
उड़ चला मैं बादलों बीच बन कर पतंग
नीचे रुई नुमा मेघ पवन की धारा में मेघ बहते थे
बड़े अकल्पनीय और बड़े विस्मयकारी प्रतिपल बदलते थे;
नीला आकाश
ठंडी हवा का झोंका मैं और सारे मेघ
मेघों ने कहा हम हैं बड़े ही बेरंग
भर दो अपनी रँगीली पतवार से हम में कुछ रंग
पतवार निकाल जब मैंने उसे चलाया
बादलों में मैंने इन्द्रधनुष को पाया
हर बार
बार बार जब भी बादलों को छूती मेरी पतवार
रंगारंग हो जाता बादलों का परिवार
कुछ देर बाद शाम ढल आई
संग अपने चमकते तारे लाई
दूर कहीं जो सूरज ढलता
धीरे-धीरे लाल रंग बिखेरता
छितिज पर जो सूरज ढल रहा था
लालिमा लिए अंगार सा
धधक रहा था
ढलते सूरज की रोशनी जो नाव पर आई
मुझे देखा उसने और मुस्काई
कहा उसने देखो यह संसार-इस एकांत को
शोर नहीं यहाँ ; मेरा
बादल और पवन का है यहाँ बसेरा
यहाँ किसी का किसी पर कोई जोर नहीं
देखो नभ में टिमटिमाते तारे दिखेंगे
राते रौशन यहाँ चन्दा मामा करंगे
न कोई बैर हमारा आपस मे है
हम सब हैं एक दूसरे के पूरक
घनघोर शांति की इच्छा लिए
हम सब यहाँ विचरते हैं सुरीले खगों के संग
मैं और मतंग यहाँ चहकते हैं
बड़ी अजीब है बादलों कि दुनिया
बड़ी सुनहरी बड़ी चमकिली
आगे बढा ही था कि मिट्टी की सुगंध आयी
थोड़ा ध्यान दिया तो पास में बदल बरस रहे थे
उस सुगंध से मैंने पूछा
इतनी ऊपर कैसे आयी
उसने कहा मैं तो इन्द्रधनुष की
खोज में निकली हूँ
तुम्हें देखा तो मिलने आयी
बादलों मे अदृश्य बूंदों के संग
जल की ठंडक लाई हूँ
चांदनी के बीच मैं नई बन आयी हूँ
इन घुमंतू मेघों की बगिया में मैं किसी की हँसी सी हूँ
मेघो के पहाड़ों में खेलति हुई मैं एक गिलहरी सी हूँ।
ऊपर से उतरा जो मैं
मन में हुआ बहुत शोक
भूधर से सुंदर जो पाया था
मैंने वह विस्मययुक्त स्वर्गलोक।