नंगे पाँव छाले तो पड़ते हैं...
नंगे पाँव छाले तो पड़ते हैं...
क्यों हो बैठे तुम पेड़ की छांव में,इन बिखरे हुए सूखे पत्तों के बीच?
क्यों हो घुटनों में अपने सिर गाड़े ,दोनों आँखे मीच?
नज़रें न चुराओ;अभी न घबराओ;
देखो इस छोटेे फूल को, कैसे घरती को चीर अपने हरे पत्ते फैलाये
चिलचिलाती धूप को एक टक देख रहा,
यह घास को जिसकी नियति पदाक्रांत होने के सिवा कुछ नहीं ;
वह भी उठ लू के थपेड़ों को झेल रहा।
देखो उस चिड़िया को जो बारिश में टूटे घोंसलों को फिर उसी उमंग से बनाती है;
सीखो मछलियों से जो नदियों में उल्टा तैर जाती है।
एक बाज़ बनो जो तूफानों के बीच नहीं उनसे कहीं ऊपर उड़ता है,
बन जाओ वो हंस जो सिर्फ मोती चुगता है।
इन राहो पर तुमसे पहले भी पांव जले हैं और आगे भी जलते रहेंगें
क्योंकि नंगे पांव तो छाले तो पड़ते हैं।
