लिखो
लिखो
कभी जो तुम अकेले बैठे, कोई धुन गुनगुनाते,
हाथों में सादे पन्ने और कलम लिए,
सामने तुम्हारे बारिश की झिरी हो
और हल्की हवा में बूँदें तैर रही हों।
साथ हो मिट्टी की खुशबू, मन्द-मन्द धीमी हवा;
जो सिहरन दे जाए, कानों में पत्तों पर बूँदों के पड़ने की आवाज आए;
जो एक झलक आसमान को देखो, तो बादल झूमते दिखें
और बिजली की चमक उनके बीच बूँदों के बादलों से बिछड़ने की गहराई दिखाए।
शांत वातावरण, बारिश की आवाज़;
आहिस्ता चलती ठंडी हवा और सिर्फ तुम,पन्ने और कलम।
पन्नों पर प्रकृति की आवाज़ लिख डालो, लिखो जो बारिश की आवाज़ बने,
जिसमें धरती की खुशबू, हवा की ठंडक और तुम्हारी सिहरन हो।
लिखो कि खुद अक्षर बन जाओ, बारिश की स्याही लेकर
कलम की नोक से खुद बह जाओ, लिखो यूँ के मन्द पवन से बहो।
लिखो जो सरगम बनें, पत्तों के हरे रंग से लिखो कि
बादल की गरज के बन कहीं कोई तार छेड़ जाएँ,
पढ़ो तो बोल तुम्हारे काले बादलों बीच सुनहरी धूप की रोशनी बन जाएँ,
कभी कहीं तुम अकेले बैठो, हाथ में सादे पन्ने और कलम लिए...