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ARVIND KUMAR SINGH

Abstract

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ARVIND KUMAR SINGH

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इश्‍क बिना

इश्‍क बिना

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तुम हो अपने गुरूर में

जो हुश्‍न पे हो इतराते

किसी की चाहत को 

कभी समझ नहीं पाते


ठहर के जरा सोचो

ये भी बहुत जरूरी है

इश्‍क बिना तुम्‍हारी भी

हर कहानी अधूरी है


गुमां न करो जवानी

एक दिन ढल जाऐगी

ढूँढोगे तब चाहत को

पर ये न फिर पाऐगी


ऐसा अल्‍हड़पन छोड़ 

बस मेरे तुम हो जाओ

प्‍यार से बाहें पसारीं हैं

इन बाहों में खो जाओ


समझ सको तो समझो

असर कुछ तो फिजा में

हमारा भी जरूर है, फिर

तुमको ही अपने हुश्‍न पे

काहे का इतना गुरूर है!


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