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ARVIND KUMAR SINGH

Abstract Tragedy Crime

4.5  

ARVIND KUMAR SINGH

Abstract Tragedy Crime

वाह री दुनिया

वाह री दुनिया

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मुसीबत पड़ोस में देख

पड़ोसियों को छुपते देखा

एक भी न निकल कर आए 

ऐसा तो न कभी हमने देखा


जब सियारों की टोली ने

धावा बोला बस्ती पर

बड़े-बड़े शेरों के जबड़ों में

थूक अटकते देखा


लाल आंखें नटेर लिया करते थे

आऐं बांऐं छुपे हैं ऐसे थानेदार

मदद की गुहार लगाते जब

मासूमों को भटकते देखा


पड़ोसी की छत पर चढ़कर

घूरेगा हमें भी सब जानते हैं

पर लंबी लंबी जुबान वालों की

जुबान को भी ताले में देखा


उनके ही जाल से उड़ाकर

चहचहाती चि‍डि़यों को बेबस

बाज दबा खूनी पंजों में जो चले   

शिकारियों का गुमान भी निचले माले में देखा


वाह री दुनिया तेरे ढोंग निराले

भाषणों में तेरा कोई सानी नहीं

कान फाड़ते रहती है खोखली मानवता

पर इससे न कोई रिश्ता जमाने भर का देखा


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