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Nalanda Satish

Abstract

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Nalanda Satish

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मानो या ना मानो

मानो या ना मानो

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आँखे चाहे किसीकी कितनी

भी अच्छी क्यो ना हो

पलको से गिरते आँसूओ का

खारापन तो एक जैसा ही है 


ठण्डीयो मे गिरती शबनम

कितनी भी लुभावनी क्यो ना हो

आसमान से गिरती सफेद चादर

का गीलापन एक जैसा हो तो है


दंगे चाहे कितने भी करवा लो 

इन्सानो को इन्सानो से लडवा लो

खुन का रंग लाल एक जैसा ही है 

इंसानियत चाहे कितना भी शर्मसार करवा लो


कुआँ है गहरा और शांत एक जगह

नदियां बहती कलकल कलकल

समंदर भी खुप गहरा और दिखता शांत

पर घमासान होती है भीतर चलबिचल 


घटनाचक्र सुबह से श्याम 

कायनात चलती दिन और रात

बरखा कैसे पहुंचती है आकाश मे

बादलो की छावं का गावं कहाँ है


जल का स्त्रोत किसे पता है 

पवन के घर की किसे खबर है 

मानो या ना मानो झुलते आसमान 

का रखवाला कोई अदृश्य शक्ति तो है।


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