कटौती
कटौती
अपने छुपे हुए पंखों पर विश्वास रख
आसमान में घूमते बहुत हैं गिद्ध आजकल
और ऊँचा उठाना पड़ेगा अपनी शख्सियत को
इमलो पर बैठा वह शख्स शिकारी है आजकल
अपने वजूद की लड़ाई खुद ही लड़ना सिख
रिश्तों की खरीददारी का चलन यहां जोरो पर है आजकल
रोशनी से दीपक की ,जगमग करना पड़ेगा जहाँ
पूर्णिमा के दिनों में कटौती चालू हुई है आजकल
अपने जमीर को जिंदा रखने की हरसू कोशिश जारी रख
ईमान को कत्ल करने के हुनर में माहिर हुए है सब आजकल
मत मारो सिसकीयाँ सबके सामने 'नालंदा'
हिचकियाँ आते ही मस्त उन्माद से भर जाते है लोग आजकल।