जीवन की इकलौती पूंजी, निज हाथों बर्बाद करूँ. बता मेरे धर्मांध शिकारी, कत्ल करूँ की माफ़ करू... जीवन की इकलौती पूंजी, निज हाथों बर्बाद करूँ. बता मेरे धर्मांध शिकारी, क...
भूल जाये शिकार भी ख़ुद को यूँ शिकारी मचान से निकले भूल जाये शिकार भी ख़ुद को यूँ शिकारी मचान से निकले
अभी मातृत्व पाया ही था देख रही सपनीले स्वप्न। पंखों में छिपाये बच्चों को सिखा रही उड़ने क... अभी मातृत्व पाया ही था देख रही सपनीले स्वप्न। पंखों में छिपाये बच्चों को ...
सीमा तब सीमा लांघे मर्यादा तक ललकारे सीमा तब सीमा लांघे मर्यादा तक ललकारे
शिकवा, शिकायत क्या करे उससे, जिसके लिए सब कुछ त्याग दिया था हमने। शिकवा, शिकायत क्या करे उससे, जिसके लिए सब कुछ त्याग दिया था हमने।
तब भी जीवन न जाने क्यों यूं ही गुजर जाता है बेमतलब की बातों में। तब भी जीवन न जाने क्यों यूं ही गुजर जाता है बेमतलब की बातों में।