लहुलुहान
लहुलुहान
लहुलुहान हो गिरी धरती पर
न देखा किसी ने उसका दर्द।
पीड़ा से चीख - चिल्ला रही
असहनीय कष्ट से कराह रही।
अभी मातृत्व पाया ही था
देख रही सपनीले स्वप्न।
पंखों में छिपाये बच्चों को
सिखा रही उड़ने का ढंग।
ममता से भरकर वह चिड़िया
बच्चों को अपने सहला रही।
चोंच से अपनी धीरे-धीरे
बहला रही पुचकार रही।
न सोचा शिकारी ने एक बार
क्या होगा इन बच्चों का।
अपने भोजन की ख़ातिर
सर्वनाश किया उसके घर का ।
नीचे चिड़िया लहुलुहान पड़ी
ऊपर बच्चे चित्कार रहे।
इस मानव की मानवता को
रह रह कर धिक्कार रहे।