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Nisha Nandini Bhartiya

Inspirational

4  

Nisha Nandini Bhartiya

Inspirational

ये भी कभी हरे थे

ये भी कभी हरे थे

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करो मत बेरहमी 

इन सूखे पत्तों पर

ये भी कभी हरे थे

खेत- खलिहान 

घर-द्वार को संभाले

मजबूती से खड़े थे। 


इठलाते थे ऊंचे दरख्त पर

हवा के झोकों के संग मुस्कुराते थे।

युवकीय ऊर्जा से परिपूर्ण 

बैठकर शाख सिंहासन पर

किस्मत पर अपनी इतराते थे।


करो मत बेरहमी 

इन सूखे पत्तों पर

ये भी कभी हरे थे

खेत- खलिहान 

घर-द्वार को संभाले

मजबूती से खड़े थे। 


भरी थी संवेदनाओं से 

इनकी चरमराहट- सरसराहट 

नव पल्लव को उकसाते थे। 

पोटली संभाले अनुभव की

कई राज सीने में दफन थे।


करो मत बेरहमी 

इन सूखे पत्तों पर

ये भी कभी हरे थे

खेत- खलिहान 

घर-द्वार को संभाले

मजबूती से खड़े थे। 


डोर थामे उम्मीद की

नव सृष्टि निर्मित कर

टूट कर तरु से बिखरे थे। 

रवि की प्रचंडता से रक्षित कर

स्वयं धू-धू कर जले थे। 


करो मत बेरहमी 

इन सूखे पत्तों पर

ये भी कभी हरे थे

खेत- खलिहान 

घर-द्वार को संभाले

मजबूती से खड़े थे। 


तुहिन बिंदु संग नहाते 

चहकते- महकते

पक्षियों संग बतियाते थे। 

मुट्ठी में अपनी आसमां को लिए 

छत बन खड़े थे। 


करो मत बेरहमी 

इन सूखे पत्तों पर

ये भी कभी हरे थे

खेत- खलिहान 

घर-द्वार को संभाले

मजबूती से खड़े थे। 


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