मन-तिमिर को दूर भगाएं
मन-तिमिर को दूर भगाएं


आओ मिल के दीप जलाएं
मन-तिमिर को दूर भगाएं।
प्रेम-प्रीति की ज्योति से
धरणी का कण-कण महकाएं।
पर्व दिवाली का आया
खुशियों का सागर लहराया।
उल्लासित हो पात-पात
धरती-अंबर सब महकाया।
जाति-धर्म की तोड़े भीत
सबको अपना मीत बनाएं।
प्रेम-प्रीति की ज्योति से
धरणी का कण-कण महकाएं।
देखो दीपों की अवली को
चमक रहीं हैं मिलकर साथ।
थक जाता है एक अकेला
दूजा गर न निभाएं साथ।
कर पकड़ कर एक-दूजे का
राष्ट्र को नूतन बनाएं।
प्रेम-प्रीति की ज्योति से
धरणी का कण-कण महकाएं।
निर्धन के घर जाकर देखो
तरस रहा अन्न बीज को।
खोए दीप्त दिवाली में
भूले तुम उनके गेह को।
थोड़ा अंश प्रकाश का
उनको भी चलकर दे आएं।
प्रेम-प्रीति की ज्योति से
धरणी का कण-कण महकाएं।