ये काल तो एक जाल सा है हर शख्स का अपना हाल सा है चाल तो इन काँटों की एक ही होती है तो हर चाल मे आ... ये काल तो एक जाल सा है हर शख्स का अपना हाल सा है चाल तो इन काँटों की एक ही होत...
बस हो गया विकास तुम्हारा ! बस हो गया विकास तुम्हारा !
दुनिया की रीत में उलझे दो पैर पर खड़े होकर खुद को इंसा समझ बैठे। दुनिया की रीत में उलझे दो पैर पर खड़े होकर खुद को इंसा समझ बैठे।
शिकवा, शिकायत क्या करे उससे, जिसके लिए सब कुछ त्याग दिया था हमने। शिकवा, शिकायत क्या करे उससे, जिसके लिए सब कुछ त्याग दिया था हमने।
वो बात ही दूसरे जहाँ की करता था वो बात ही दूसरे जहाँ की करता था
पढ़ेलिखे ,बिलकुल बेकार हैं बहुत कुछ सपने लिये खाली पेट आशिया ढूंढे घर में तिरस्कृत पढ़ेलिखे ,बिलकुल बेकार हैं बहुत कुछ सपने लिये खाली पेट आशिया ढूंढे घर...