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वक्त

वक्त

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750


मैं सोच रहा हूँ कुछ वक्त लेकर

की इस वक्त का आखिर काम है क्या

ये वक़्त जो कब से चल रहा है

इस वक्त का आखिरी मुकाम है क्या

मैं सोच रहा हूँ कुछ वक्त लेकर

की इस वक्त का आखिर काम है क्या


कोई तो पल होगा ना यहाँ

जो पहले पल का निर्माण बता दे

वो पल जो तुजको मिल जाये

तो उसको मेरा नाम बता दे

मैं पूछूंगा उस पल से

की इस वक्त पे उसका बयान है क्या

मैं सोच रहा हूँ कुछ वक्त लेकर

की इस वक्त का आखिर काम है क्या


ये वक्त भी कैसा नाप है

जिसका कोई परिमाण ना हो

हम लिख रहे तारीख पे तारीख

फिर भी पक्का हिसाब ना हो

कई बार तो शक होता है

की अनदेखे इस ब्रह्माण्ड में

ये वक्त कोई मिराज ना हो

सिलसिला क्यों रुकता नहीं ये

ऐसी भी उसकी शर्त है क्या

मै पूछता हूँ इस सूरज से

की वक्त से उसका कर्ज़ है क्या

मैं सोच रहा हूँ कुछ वक्त लेकर

की इस वक्त का आखिर काम है क्या


ये काल तो एक जाल सा है

हर शख्स का अपना हाल सा है

चाल तो इन काँटों की एक ही होती है

तो हर चाल मे आखिर फर्क है क्या

में शतरंज खेलूँ इस वक्त के साथ

बस उसकी चाल समझने को

की इस चाल का वह आयाम है क्या

मैं सोच रहा हूँ कुछ वक्त लेकर

की इस वक्त का आखिर काम है क्या


माँग के देखा जब उन मौत के सौदागर से

तब जाकर के पता चला

की इस वक्त का आखिर दाम है क्या

मै भूल ही गया इस वक्त की गहरी सोच मे

की मेरी मौत का भी एक वक्त है क्या


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