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यारी की दुआ

यारी की दुआ

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अगर मिल जाऊँ कभी मैं किसी यार के दिल में,

कभी ना छुड़ाना मुझ को उस यार के दिल से,

दिल पाक ही होता है उस यार का यारों,

कि मेरी साँस भी चलती है उस यार के दिल से।


बेजान में भी जान सी,

जो जुड़ तो सके पर,

कभी टूट ना सके।

कोई शाही से पन्नों पर,

किसी शख्स का ख़ुदा हो चाहे,

जुदा मगर बंधन नहीं पलता।

ये कोई मज़हब की रस्म पर,

जी भर के तुम लुटो मज़ा यारों से खेल का,

पर खेल ना जाना कहीं एक यार के दिल से,

अगर मिल जाऊँ कभी मैं किसी यार के दिल में,

कभी ना छुड़ाना मुझ को उस यार के दिल से।


एक ख़्वाब को मंज़िल बनाकर,

उसे जीत का अंजाम दूँ,

मैं तोड़ कर अभिमान सारे,

उसे खून का इनाम दूँ।

हर दर्द को पीकर भी जो ज़िंदा मैं रह सकूँ,

तो वजह भी उसकी होती है एक यार के दिल से,

यारी हूँ मैं करती हूँ दुआ एक यार के दिल से,

कि धड़कते रहना हर चोट में भी अपने यार के दिल से।


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