चल उठ अपनी औकात बदल दे
चल उठ अपनी औकात बदल दे
उठ जा रे ओ बन्दे,
चल उठ अपनी औकात बदल दे,
जो बाँध रखे है तुझको अब तक,
चल उठकर वो जंजीर मसल दे।
अपने ही आप में तू,
चल उठ अपनी पहचान बदल दे,
जुनून भर इस ख्वाब में ऐसा,
कि वो अपना हिन्दुस्तान बदल दे।
कोई जंग अभी तो लड़ी नहीं,
बस मर गया एक सोच से ही,
दो बूंद लहू की बही नहीं,
और हार गया एक चोट से ही।
ये सड़क है तेरे सपनों की,
यहाँ ऐसी आँधी तो रोज चलेगी,
पर जिस मोड़ पर ये जीत खड़ी थी,
तू भाग गया उस मोड़ से ही।
जीत नहीं सकता किसी से,
चल उठ कर यह एहसास बदल दे,
उठ जा रे ओ बन्दे,
चल उठ अपनी औकात बदल दे।
हर दर्द जो तू सहता है,
रखना ज़िंदा उसे सीने में,
इस दर्द को ही अब आग बनाकर,
जी जान लगा दे जीने में।
तू शूरवीर एक योद्धा है,
तूने आग का दरिया सोखा है,
अब मेहनत से जो घूँट बना है,
खूब नशा है उसे पीने में।
कोशिश की कमी ना रखना तुम,
जाने कब रब तकदीर बदल दे,
उठ जा रे ओ बन्दे,
चल उठ अपनी औकात बदल दे।
