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Mahavir Uttranchali

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Mahavir Uttranchali

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ध्यान से निकले

ध्यान से निकले

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शेर इतने ही ध्यान से निकले

तीर जैसे कमान से निकले


भूल जाये शिकार भी ख़ुद को

यूँ शिकारी मचान से निकले


था बुलन्दी का वो नशा तौबा

जब गिरे आसमान से निकले


हूँ मैं कतरा, मिरा वजूद कहाँ

क्यों समन्दर गुमान से निकले


देखकर फ़ख्र हो ज़माने को

यूँ ‘महावीर’ शान से निकले


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