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Anjana Singh (Anju)

Abstract

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Anjana Singh (Anju)

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कितनें ही प्रतिबिंब

कितनें ही प्रतिबिंब

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मनुष्य का जीवन है होता

प्रतिबिंब खुद के कार्यों का

करते हम जब सुंदर कार्य

जीवन ‌हो जाता शिरोधार्य


प्रतिबिंब आईने का है दिखाता

वहीं जो हम हैं दिखते

मुस्कुराता है यह तभी

जब हम मुस्कुराते


प्रतिबिंब जो पानी में दिखता

छूने की कोशिश में

पानी की चंचलता संग

हर पल अपना रूप बदलता


प्रतिबिंब आंखों का कहता

कुछ अनकही सी दास्तां 

प्यार भरें दिलों को

एक-दूजे का वास्ता


प्रतिबिंब स्मृतियों का

होता चलचित्र सा चंचल

हर एक पल

जाता है बदल


प्रतिबिंब परछाई की

साथ हमेशा रहती

सब साथ छोड़ देते

पर वो साथ नहीं है छोड़ती


प्रतिबिंब जो चांद में दिखता

वो प्यार उसी का दर्शाता

देखकर होती मौन सी बातें

खूबसूरत सी चांदनी रातें


प्रतिबिंब जो बच्चों में दिखता

वो प्यार हमारा दर्शाता

कुछ हमारा व्यवहार दिखाता

हमारा दिया संस्कार दिखाता


प्रतिबिंब बीतें दिनों की

देखने को दिल है करता

उम्र के आख़िरी पड़ाव में

मन यूं ही है मचलता


एक प्रतिबिंब खुद में दिखती

मन के सुंदर एहसासों की

दृश्य सामने नहीं व्यतीत होता

पर महसूस वह सुंदर कराती


प्रतिबिंब मेरे एहसासों का

हैं मेरी कविताएं

छूकर मन के ख्यालों को

बनाती हैं कल्पनाएं


प्रतिबिंब ईश्वर का

गर जो देखना चाहें

मिल जाएगा वो खुद में

हो साफ मन और निगाहें


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