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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

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Nalanda Satish

Abstract Tragedy

फसाद

फसाद

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पहले दिल में तबाही का कारण होती थी मुहब्बत कभी

अब तो शहर के शहर चपेट में है इसकी


अकस्मात अपघात का कारण होते थे रास्ते कभी

अब तो रास्तों के साथ रिश्ते भी रपेट में है इसकी


सल्तनतों के मसलो से पैदा होते थे फसाद कभी

अब तो सल्तनत ही पूरी लपेट में है इसकी


खाना खाकर पेटभर डकार आना लाजमी था कभी

अब तो सियासत के थाली में पेट की भूख भी रपेट में है इसकी


जिन मजारों पर सिर नवाकर मिलता था सुकून कभी

अब तो दिसंबर में मजारे भी लाग लपेट में है इसकी


रूहानी चांदनी के प्रकाश का बोल बाला था कभी 'नालंदा'

अब तो सूरज के कत्ल में चाँद भी चपेट में है इसकी



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