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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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होली की बात

होली की बात

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चुनाव लड़ रहे एक प्रत्याशी से

मेरी मुलाकात हो गई,

यार क्या बताऊँ क्या क्या बात हो गई,

प्रत्याशी ने मुझसे एक मत की माँग की

मैंनें कहा ये क्या बात हुई।

प्रत्याशी ने हाथ जोड़ा

बड़ी मासूमियत से बात आगे बढ़ाया 

और मुझे अपने अंदाज मेंं समझाया।

प्यारे मतदाता मत मत दो या न दो

पर मेरी बात गाँठ बाँध लो।

ये चुनाव चुनावी होली सी है

वादों के रंगों की बौछार चल रही है

भीग जाओगे तो अच्छा है

वरना बहुत पछताओगे।

चुनावी वादे तो सिर्फ़ वादे है

इस पर सोच विचार न करो,

चुनावी रंग गुलाल तो स्वीकार करो,।

जीतूं या हार जाऊँ क्या फर्क पड़ता है

तुम जैसों के मत से भला भी नहीं होता,

चुनावी प्रचार तो महज बहाना है

जीतने हारने का अंतर भर बढ़ाना है।

जीतने के लिए रुपयों की होली

खेलनी ही पड़ती है,

तुम जैसों के भरोसे जीत भला कब मिलती है।

मत माँगना महज औपचारिकता है,

चुनाव जीतने के लोकतंत्र को

अपने ढंग से रंगना पड़ता है,

मतों के रंग बिरंगी फुहारों के साथ

खून की होली भी खेलनी पड़ती है,

तब जाकर कहीं कुर्सी मिलती है।

बस! हे मेरे प्यारे मतदाता

ऐसी होती है हमारी चुनावी होली,

रंग अबीर गुलाल के साथ

लगानी पड़ती है कुर्सी की बोली।

आओ गले मिलकर होली मनाएं

आपको मुबारक हो होली या न हो

हमें तो मुबारक हो होली

संग संग मेरी चुनावी होली

बुरा न मानो यार होली है

रंग बिरंगी अपने पन की होली है

भाईचारे का पर्व होली है।



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