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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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मैं जिंदा हूँ

मैं जिंदा हूँ

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आपने अपने मन का गुबार निकाल दिया

मुझे मारने का पूरा प्रयास किया,

पर आप भूल गए आप खुदा, ईश्वर नहीं हो,

आपने पाप किया है

मुझे धरा पर लाने का

या शायद अपना संताप मिटाने का।

पर मैं आपसे नहीं पहुंचूंगा

आप खुद से पूछिए

कि जब मुझे मारना ही आपका विचार था

तब मुझे संसार लाने का विचार क्यों किया?

माँ के सुरक्षित गर्भ में स्थान क्यों दिया?

आप बेशर्म बेहया हैं

जो पश्चाताप तक नहीं होता

हत्यारे बनने की कोशिश के बाद भी

चुल्लू भर पानी में डूबे मर जाने का 

मन में ख्याल भी नहीं आता ।

मैं तो इस जहाँ में आया भी

आपने मारने का जतन भी किया

पर मैं मरा नहीं जिंदा हूँ,

पर आपके लिए शर्मिन्दा हूँ

पर आपको लगता है कि 

आपको कोई फर्क नहीं पड़ता,

पर फर्क तो पड़ेगा ही 

क्योंकि आपको मर मर कर 

हर हाल में जीना ही पड़ेगा।

आपके कृत्य हर समय सतायेंगे

आप जीयेंगे भी मरेंगे भी

रोयेंगे, गिड़गिड़ायेंगे, पछताएंगे

मौत की खातिर दीवारों पर सिर टकराएंगे

फिर भी कुछ कर नहीं पायेंगे

क्योंकि मरने की कोशिश करके भी

हमारी तरह मर भी नहीं पायेंगे,

मैं जिंदा हूँ, आप भी रहोगे

बस! दिन रात अपने कृत्य पर रोते रहोगे। 


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