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Kunwar Yuvraj Singh Rathore

Abstract

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Kunwar Yuvraj Singh Rathore

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राजनीति और संघर्ष

राजनीति और संघर्ष

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ऐ दोस्त मेरे कभी कभी तो,

पूर्जो को भी धोया जाता हैं।

ये संघर्ष बड़ा इस रोटी का,

तु‌ माने‌ न समझे मुझको पर

कभी कभी तो खुद पर रोया जाता हैं,

कौन भला करता इस मानव का ?

जो घोड़े बेचकर सोता है ?


बीच भरे बाजारों में भी,

खुल कर गाता , रोता है।

ऐ दोस्त मेरे कभी कभी तो,

पूर्जो को भी धोया जाता हैं।


क्या मांगों गे,अधिकार तुम्हारा,

यहां बहरे रणमल ,राजा हैं,

अधिकार जगह, धिक्कार मिलेगा,

यहां बजते खटमल, बाजा हैं।


ऐ दोस्त मेरे कभी कभी तो,

पूर्जो को भी धोया जाता हैं।

चांडाल चौकड़ी बनती कब ?

जब दुश्मन काका , ताऊ हो।


तू रोता, उस दुःख घाणी में,

जहां मिनिस्टर दादा, भाऊ हो।

ऐ दोस्त मेरे कभी कभी तो,

पूर्जो को भी धोया जाता हैं।


यहां शिक्षा के भी चार हाथ हैं,

पहला उदाहरण थानेदार,

पैसा, वसूली ,जान पहचान,

चौथा उदाहरण दानेदार।


यहां कड़वे को भी मीठा कहते,

भाई गोलमा की चोखट हैं

अब सूरज भी , चंदा से पूछें,

क्या घर उजाला फोकट हैं ?


ऐ दोस्त मेरे कभी कभी तो,

पूर्जो को भी धोया जाता हैं।

तु रो कर अकेला क्या करेगा ?

बस तुझ पर गीत बनाएंगे।


ऊपर बड़े बड़े प्रोडक्टो पर,

बस ये तेरी मीत बनाएंगे ।

नहीं इनके मैले कपड़े हैं,

जो धोके दाग़ निकालोगे,

ये तो मैले ,‌मन मुस्तनडो से,


तुम कैसे पाग निकालोगे ?

रोना मत मेरे दोस्त दीवानें,

एक दिन दौर सामंती जाएगा,

तुम हसना,गाना धूम मचाना,

जब सत्यं , नवंती आएंगा।


ऐ दोस्त मेरे कभी कभी तो,

पूर्जो को भी धोया जाता हैं।।


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