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Kunwar Yuvraj Singh Rathore

Abstract

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Kunwar Yuvraj Singh Rathore

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जिंदगी और द्वंद्व

जिंदगी और द्वंद्व

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मैं छिपाना जानता, 

तो संसार मुझे साधु समझता। 

विवशता ने मार दिया था, 

हमारा अंचल भी तो सीन लिया था। 

मैं जरा तब बोल भी देता, 

संसार मुझे भी तब मार देता। 

मैं पंछी भटकता रेगिस्तान में, 

बचता जो मर्यादित आन में। 

जो मान ले बड़ी बात नहीं, 

थे जो कल मेरे आज वो साथ नहीं। 


मैं छिपाना जानता, 

तो संसार मुझे साधु समझता। 

हा कुछ थी बाते उन्ह लहरों में, 

जो पाजेब बंधी थी उन्ह पैरों में। 

कारवाँ ये था जो हमने चलाया ,

पर इस बात को जन में फैलाया। 


मैं छिपाना जानता, 

तो संसार मुझे साधु समझता। 

ना तप जरा भी मैंने जाना है

फिर क्यूँ पथ का पंछी माना है। 

विश्वास जगत् में अब साचा नहीं ,

मत मानो जगत् से अब आशा नहीं।

मैं छिपाना जानता, 

तो संसार मुझे साधु समझता।।



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