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Kunwar Yuvraj Singh Rathore

Tragedy Others

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Kunwar Yuvraj Singh Rathore

Tragedy Others

राष्ट्रीय राजनीतिक मानसिकता

राष्ट्रीय राजनीतिक मानसिकता

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शर्म करो कुछ मय्यत की भी,

मुसकंडो से तुम हसते हो।

विकल आत्मा कैसे पीतीं ?

विष सांप सा रसते हो।


दुर्व्यवहारो में भी दुःख,

सहते बच्चे, बूढ़े भी हैं,

राग बांटने तुम भी जाते,

किंतु कटोरा हाथ लिए तुम।


संवेदनाओं से वेदना देकर,

मायूस मुखौटा साथ लिए तुम।

धर्म नाम की धारा में तुम,

मैल अखट पाप का धोते हो।


राजनीति की मय्यत में तुम,

इंसान कांट कर सोते हो,

शर्म करो कुछ मय्यत की भी,

मुसकंडो से तुम हसते हो।


विकल आत्मा कैसे पीतीं ?

विष सांप सा रसते हो।

बुर्के पे कभी कुर्ते पे तुम,

कभी केसरिया पर हसते हो।


कभी रोज़गार तो शिक्षा पे कभी,

योजनाओं में भी फंसते हों।

यहां बात नहीं है एक किसी की,

सब नेता जी.डी.पी खाएंगे।


अपने अपने मेनिफेस्टो में,

ये गुण विकास के गाएंगे।

शर्म करो कुछ मय्यत की भी,

मुसकंडो से तुम हसते हो।


विकल आत्मा कैसे पीतीं ?

विष सांप सा रसते हो।

नीति की भी नियत होती,

अगर आत्मा चाहतीं आपकी।


भ्रष्टाचार की नैय्या डूबती,

व्यावहारिकता होती साफ़की।

कुछ तो मानवता भी देखों,

गरीब मारकर खाओं मत।


तुम दे सको तो रोटी दे दो,

ये घर तोड़कर जाओं मत।

शर्म करो कुछ मय्यत की भी,

मुसकंडो से तुम हसते हो।


विकल आत्मा कैसे पीतीं ?

विष सांप सा रसते हो।

सपनों की तुम हत्या करते,

खुशहाल भविष्य दिखलाते हो,

राजमहल के भीतर बैठकर,

अप्लाई पाॅलिशी करतें हों।


रेगिस्तान के धोरों में तुम,

मन के हथकंडे करतें हों।

क्या ? नैतिकता भी मारी गई,

या विज्ञानवाद अभी हावी हैं ?


क्यों ? खुद की मय्यत भी बोहते,

मरण शय्या में फूटकर रोते हों।

शर्म करो कुछ मय्यत की भी,

मुसकंडों से तुम हसते हो।

विकल आत्मा कैसे पीतीं ?

विष सांप सा रसते हो।।


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